संधि व संधि विच्छेद (Sandhi Aur Sandhi Viched In Hindi ) , हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है और इसका ज्ञान हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाले के लिए व परीक्षा की दृष्टि से भी बहुत ज़रूरी है।
संधि का शाब्दिक अर्थ है – योग अथवा मेल अर्थात “दो ध्वनियों या दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को ही संधि (Sandhi) कहते हैं।”
संधि की परिभाषा
जब दो वर्ण पास-पास आते हैं या मिलते हैं तो उनमें विकार उत्पन्न होता है अर्थात वर्ण में परिवर्तन हो जाता है, यह विकार युक्त मेल ही संधि कहलाता है।
कामताप्रसाद गुरु के अनुसार, ‘दो निर्दिष्ट अक्षरों के आस पास आने के कारण उनके मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते हैं।
श्री किशोरदास वाजपेयी के अनुसार, ‘जब दो या अधिक वर्ण पास-पास आते हैं तो कभी-कभी उन में जो रूपांतर हो जाता है। इसी रूपांतर को संधि कहते हैं।
संधि विच्छेद (Sandhi Viched In Hindi )
वर्णों के मेल से उत्पन्न ध्वनि परिवर्तन को ही संधि कहते हैं। परिणामस्वरूप उच्चारण एवं लेखन दोनों ही स्तरों पर अपने मूल रूप से भिन्नता आ जाती है। अतः उन वर्णो या ध्वनियों को पुनः मूल रूप में लाना ही संधि विच्छेद (Sandhi Viched In Hindi) कहलाता है ।
संधि के उदाहरण
दो शब्द वर्ण = मेल = संधियुक्त शब्द
महा + ईश आ + ई = महेश
यहां (आ+ई) 2 वर्णों के मेल से विकार स्वरूप ध्वनि उत्पन्न हुई और संधि का जन्म हुआ।
संधि विच्छेद के लिए पुनः मूल रूप में लिखना होगा।
संधि युक्त शब्द संधि विच्छेद
जैसे महेश = महा + ईश
मनोबल = मनः + बल
गणेश। = गण + ईश आदि।
संधि के भेद
संधि के तीन भेद होते हैं
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
1.स्वर संधि की परिभाषा
स्वर संधि दो स्वरों के मेल से उत्पन्न विकार स्वर संधि कहलाता है।
स्वर संधि के प्रकार
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण् संधि
- अयादि संधि
१. दीर्घ संधि
इस संधि में दो समान स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं।यदि ‘अ’ ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’,’उ’,’ऊ’ के बाद वही लघु या दीर्घ स्वर आए तो दोनों को मिलकर क्रमशः ‘आ’ ‘ई’ ‘ऊ’ हो जाते हैं।
दीर्घ संधि के उदाहरण
अ + अ = आ अन्न+ अभाव = अन्नाभाव
अ + आ = आ भोजन + आलय = भोजनालय
आ + अ = आ विद्या + अर्धी = विद्यार्थी
आ + आ = आ महा + आत्मा = महात्मा
इ + इ = ई गिरी + इंद्र = गिरींद्र
ई + इ = ई माही + इंद्र = महिंद्र
इ + ई = ई। गिरी + ईश = गिरीशा
ई + ई = ई रजनी + ईश = रजनीश
उ + उ = ऊ। भानु + उदय = भानुदय
उ + ऊ = ऊ वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + उ = ऊ। भू + ऊर्जा = भूर्जा
२. गुण संधि
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’ ‘उ’ या ‘ऊ’ ‘ऋ’ आए तो दोनों मिलकर क्रमशः ‘ए’ ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाते हैं।
गुण संधि के उदाहरण
अ + इ = ए देव + इंद्र = देवेंद्र
अ + ई = ए गण + ईश = गणेश
आ + इ = ए यशा + ईष्ट = यथेष्ट
आ + ई = ए रमा + ईश = रमेश
अ + उ = ओ वीर + उचित = विरोचित
अ + ऊ = ओ जल + ऊर्मी = जालौमी
आ + उ = ओ महा + उत्सव = महोत्सव
आ + ऊ = ओ गंगा + उर्मी = गंगौर्मी
अ + ऋ = अर् कण्व + ऋषि = कण्वर्षी
आ + ऋ = अर् महा + ऋषि = महर्षि
३. वृद्धि संधि
जब अ या आ के बाद ए या ऐ हो तो दोनों के मेल से ‘ऐ’ तथा यदि ‘ओ’ या ‘औ’ हो तो दोनों के स्थान पर ‘औ’ हो जाता है।
व्रद्धि संधि के उदाहरण
अ + ए = ऐ एक + एक = एकैक
अ + ऐ = ऐ परम + ऐश्वर्य = परमेश्वर्य
आ + ए = ऐ सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ। महा + ऐश्वर्य = महेश्वर्य
अ + ओ = औ परम + ओज = परमोज
आ + ओ = औ महा + ओजस्वी = महोजस्वी
अ + औ = औ वन + औषध = वनोषध
आ + औ = औ महा + औषध = महोषध
४. यण् संधि
यदि ‘इ’ या ‘ई’,’उ’ या ‘ऊ’ तथा ऋ के बाद कोई विभिन्न स्वर आए, तो ‘इ’ ‘ई’ का ‘य’ ‘उ’ – ‘ऊ’ का ‘व्’ और ‘ऋ’ का ‘र’ हो जाता है, साथ ही बाद वाले शब्द के पहले स्वर की मात्रा य्,व्,र्, मैं लग जाती है ।
यण संधि के उदाहरण
इ + अ = य अति + अधिक = अत्यधिक
इ + आ = या इति + आदि = इत्यादि
ई + आ = या नदी + आगम = नधागम
इ + उ = यु अति + उत्तम = अत्युतम
इ + ऊ = यू अति + ऊष्म = अत्युष्म
इ + ए = ये प्रति + एक = प्रत्येक
उ + अ = व सु + अच्छ = स्वच्छ
उ + आ = वा सु + आगत = स्वागत
उ + ए = वे अनु + एषण = अन्वेषण
उ + इ = वि अनु + इति = अन्विति
ऋ + आ = रा पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
५. अयादि संधि
यदि ‘ए’ या ‘ऐ’ ‘ओ’ या ‘औ’ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो ‘ए’ का ‘अय्’,ऐ का ‘आय्’ हो जाता है तथा ‘ओ’ का ‘अव्’ और ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाता है।
अयादि संधि के उदाहरण
ए + अ = अय ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय। नै + अक = नायक
ओ + अ = अव पो + अन = पवन
औ + अ = आव। पौ + अक = पावक
2. व्यंजन संधि
व्यंजन संधि में एक व्यंजन का किसी दूसरे व्यंजन से अथवा स्वर से मेल होने पर दोनों मिलने वाली ध्वनियों में विकार उत्पन्न होता है। इस विकार से होने वाली संधि को व्यंजन संधि कहते हैं।
व्यंजन संधि के नियम व उदाहरण
व्यंजन संधि संबंधी कुछ प्रमुख नियम यहां दिए गए हैं।
नियम 1 – यदि प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण अर्थात ‘क्’ ‘च्’ ‘ट्’ ‘त्’ ‘प्’ के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आए या य, र, ल, व या को स्वर आए तो ‘क्’ ‘च्’ ‘ट्’ ‘त्’ ‘प्’ के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण अर्थात् ‘ग्’, ‘ज्’, ‘ड्’, ‘द्’, ‘ब्’, हो जाता है; जैसे-
वाक् + ईश = वागीश
दिक् + गज =दिग्गज
वाक् + दान = वाग्दान
सत् + वाणी = सद्ववाणी
नियम 2 – यदि प्रत्येक वर्ग के पहले वर्ण अर्थात् ‘क्’ ‘च्’ ‘ट्’ ‘त्’ ‘प्’ के बाद ‘न’ या ‘म’ आए तो ‘क्’ ‘च्’ ‘ट्’ ‘त्’ ‘प्’ अपने वर्ग के पंचम वर्ण का अर्थात् ङ्, ञ्, ण्, न, म् मैं बदल जाते हैं जैसे-
वाक् + मय = वाड्मय
षट् + मास = षण्मास
जगत्। + नाथ = जगन्नाथ
अप् + मय = अम्मय
नियम 3 – यदि ‘म्’ के बाद कोई स्पर्श व्यंजन आए तो ‘म’ जुड़नेवाले वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण या अनुस्वार हो जाता है जैसे-
अहम् + कार = अहंकार
कैम् + चित् = किंचित्
सम् + गम = संगम
सम् + तोष = संतोष
नियम 4 – यदि म् के बाद य, र, ल, व, श, ष, स, ह मैं से किसी भी वर्ण का मेल हो तो ‘म’ के स्थान पर अनुस्वार ही लगेगा जैसे-
सम् + योग = संयोग
सम् + रचना = संरचना
सम् + वाद = संवाद
सम् + हार = संहार
सम् + रक्षण = संरक्षण
नियम 5 – यदि त् या द् के बाद ‘ल’ रहे तो ‘त्’ या ‘द्’ ल् मैं बदल जाता है जैसे-
उत् + लाश = उल्लास
उद् + लेख = उल्लेख
नियम 6 – यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘ज’ या ‘झ’ हो तो ‘त्’ या ‘द्’ ‘ज्’ मैं बदल जाता है, जैसे-
सत् + जन = सज्जन
उद्। + झटिका = उज्झटटिका
नियम 7 – यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘श’ हो तो ‘त्’ या ‘द्’ का ‘च्’ और ‘श्’ का ‘छ्’ हो जाता है, जैसे-
उद् + श्वास = उच्छ्वास
उद् + शिष्ट = उच्छिष्ट
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
नियम 8 – यदि ‘त्’ या ‘द्’ के बाद ‘च’ या ‘छ’ हो तो ‘त्’ या ‘द्’ का ‘च्’ हो जाता है, जैसे-
उद् + चारण = उच्चारण
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
नियम 9 – ‘त्’ या ‘द्’ के बाद यदि ‘ह’ हो तो त् / द् के स्थान पर ‘द्’ और ‘ह’ के स्थान पर ‘ध’ हो जाता है, जैसे-
तद् + हित = तद्धित
उद् + हार = उद्धार
[ संस्कृत व्याकरण ग्रंथों में ‘उद्’ का प्रयोग श्रेष्ठ बताया गया है जबकि हिंदी में ‘उत्’ का भी प्रयोग होता है]
नियम 10 – जब पहले पद के अंत में स्वर्ण हो और आगे के पद का पहला वर्ण ‘छ’ हो तो ‘छ’ के स्थान पर ‘च्छ’ हो जाता है, जैसे-
अनु + छेद = अनुच्छेद
परिवार + छेद = परिच्छेद
आ। + छादन = आच्छादन
3. विसर्ग संधि
विसर्ग (:) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल में जो विकार होता है, उसे ‘विसर्ग संधि’ कहते हैं।
विसर्ग संधि के नियम व उदाहरण
विसर्ग संधि संबंधी कुछ प्रमुख नियम इस प्रकार हैं-
यदि किसी शब्द के अंत में विसर्ग ध्वनि आती है तथा उसमें बाद मैं आने वाले शब्द के स्वर अथवा व्यंजन का मेल होने के कारण जो ध्वनि विकार उत्पन्न होति हैं वही विसर्ग संधि है।
नियम 1 – यदि विसर्ग के पूर्व ‘अ’ हो और बाद में ‘अ’ हो तो दोनों का विकार ओ हो जाता है। जैसे-
मनः + अविराम = मनोविराम
यशः + अभिलाषा = यशोभिलाषा
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
नियम 2 – यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और बाद वाले शब्द का पहला अक्षर ‘अ’ हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। ‘अ’ के अतिरिक्त अन्य कोई भी अक्षर हो तो का लोप हो जाता है, जैसे-
अतः + एव = अतएव
यशः + इच्छा = यशइच्छा
नियम 3 – यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो तथा बाद में किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा वर्ण अथवा य,र,ल, व व्यंजन आते हैं तो विसर्ग ‘ओ’मैं बदल जाते हैं। जैसे-
तपः + वन = तपोवन
अधः + गामी = अधोगामी
वयः। + वृद्ध = वयोवृद्ध
अंततः + गत्वा = अंततोगत्वा
नियम 4 – यदि विसर्ग के बाद अ के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर अथवा किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या ‘य’ ‘र’ ‘ल’ ‘व’ ‘ह’ हो तो विसर्ग के स्थान में ‘र्’ हो जाता है, जैसे-
आयुः + वेद = आयुर्वेद
ज्योति: + मय = ज्योतिर्मय
चतु: + दिशि = चतुर्दशी
आशी: + वचन = आशीर्वचन
नियम 5 – यदि विसर्ग के बाद ‘च’ या तालव्य ‘श’ आता है तो विसर्ग ‘श’ हो जाता है, जैसे-
पुशः + च = पुनश्च
तप: + चर्या = तपश्चर्या
यशः + शरीर = यशश्शरीर
Conclusion on Sandhi Aur Sandhi Viched In Hindi
इस पोस्ट में हमने जाना कि संधि व संधि विच्छेद (Sandhi Aur Sandhi Viched In Hindi) क्या है ? कितने प्रकार के होते है? व हमने सभी संधियों के नियम व उदाहरण के बारे में भी अच्छे से जानने की कोशिश की।
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