भाव विस्तार / पल्लवन – अर्थ ,परिभाषा ,प्रक्रिया, उदाहरण Bhav Vistar / Pallavan Definition ,rules and Example In Hindi
आज इस आर्टिकल में हम हिंदी व्याकरण के टॉपिक भाव विस्तार / पल्लवन के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे और जानेगे की “भाव विस्तार किसे कहते हैं? भाव विस्तार की प्रक्रिया क्या है? भाव विस्तार में ध्यान रखने योग्य बातें और इसके उदाहरण कैसे हो सकते है?” तो चलिए शुरू करते है।
भाव विस्तार / पल्लवन की परिभाषा
भाव विस्तार, रचना पल्लवन या वृद्विकरण का तात्पर्य है कि किसी भाव को विस्तार से लिखना।
इसमें कविता की कोई पंक्ति, काव्य-सूक्ति, कहावत, लोकोक्ति या गद्य सूक्ति को उसके अर्थ के विस्तार के साथ सोदाहरण प्रस्तुत किया जाता है।
काव्य सूक्तियां लोकोक्ति में भाव या विचार अंतर्निहित होते हैं; एक दूसरे के साथ बंधे हुए होते हैं।अतःउसका विस्तार से विवेचन करना ताकि सूत्रवाक्य, सूक्ति या कहावत में छुपे गहरे अर्थ को स्पष्ट किया जा सके।
वास्तव में यह एक प्रकार से गागर में सागर भरे होने के समान होते हैं।भाव विस्तार में हमें गागर से भरे उस सागर को निकालकर उसका पूरा प्रवाह दिखाना होता है। इसलिए इसे भाव विस्तार, रचना पल्लवन या वृद्धिकरण कहते हैं।
भाव विस्तार की प्रक्रिया
- काव्य सूक्ति या कहावत, लोकोक्ति को समझाना, शाब्दिक अर्थ के द्वारा।
- शाब्दिक अर्थ के बाद उसके आशय को विस्तार से स्पष्ट करना।
- उदाहरणों द्वारा, अन्य कवियों, विद्वानों के कथनों द्वारा उसके आशय को पुष्ट करना।
भाव विस्तार में ध्यान रखने योग्य बातें
- भाव विस्तार की भाषा सरल एवं सुबोध हो।
- वाक्य छोटे हो तथा आलंकारिक भाषा से बचा जाए।
- भाव विस्तार सदैव अन्य पुरुष शैली में लिखा जाना चाहिए।
- सामासिक शैली की अपेक्षा व्यास शैली का प्रयोग करना चाहिए।
- मूल भाव पर किसी प्रकार की आलोचनात्मक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।आप उस भाव से चाहे सहमत हैं या नहीं; हमें तो उस भाव का विस्तार करना चाहिए।
- कविता की पंक्ति की सप्रसंग व्याख्या करने की भी आवश्यकता नहीं है।
भाव विस्तार / पल्लवन के उदाहरण
- आंख में हो स्वर्ग लेकिन पाँव धरती पर टिके हो।
भाव विस्तार – व्यक्ति को जीवन में उन्नति महत्वकांक्षी होना चाहिए किंतु इनका महत्वकांक्षी न हो की वह यथार्थ की ही उपेक्षा कर बैठे अर्थात व्यक्ति की कल्पनाएं या स्वपन ऐसे होने चाहिए जो कार्य रूप में बदल सके अर्थात व्यक्ति को अपने व्यवहारिक पक्ष को समझ कर अपने आकांक्षाओं को लचीला बनाना चाहिए। केवल हवाई किले बनाने, मन के लड्डू खाने या ख्याली पुलाव पकाने से कुछ नहीं होने वाला। सेठिया ने ठीक ही कहा कि “बटाऊ चाल्यो मंजिल मिलसी, मन रा लाडू खार कदैई सुन्यो न ,कोई धाप्यो।” वास्तव में जितनी रजाई लंबी है उतने ही तो पांव पसारने चाहिए। अतः आदर्श स्थिति की प्राप्ति व्यक्ति का लक्ष्य होना चाहिए किंतु जीवन की यथार्थता को नहीं भूलना चाहिए।
भाव विस्तार अभ्यास के लिए महत्वपूर्ण सूक्तियां
- अजगर करे न चाकरी,पंछी करे न काम।
- अठे सुजस पभुता उठे, अवसर मरियाँ आव।
- अतिशय रगड़ करे जो कोई,अनल प्रगट चंदन ते होई।।
- अधिकार खोकर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है।
- अमृत नहीं अपमान से विष मान से पीना भला।।
- आवश्यकता आविष्कार की जननी है।
- इला न देणी आपणी, हालरिया हुलराय।
- इंतजार शत्रु है, उस पर यकीन मत करो।
- करणी जासी आपणी कुण बेटो कुन बाप।
- का वर्षा जय कृषि सुखाने।
- चलने का है नाम जिन्दगी चलते रहो निरन्तर
- जब आये सन्तोष धन सब धन धूरि समान।
- जहाँ न पहुॅचे रवि वहाँ पहुंचे कवि
- जाके पाँव न फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई।
- जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ
- ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पण्डित होय।
- दीनों की सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है।
- दुःख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख का नवल प्रभात |
- देव देव आलसी पुकारा।
- निजभाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
- पर उपदेश कुशल बहुतेरे
- परहित सरिस धर्म नहि भाई।
- पराधीन सपनेहु सुख नाही
- पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान करले।।
- बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है।
- मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
- मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
- लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर।।
- श्वास घुटे तो समझो, अब इतिहास बदलने वाला है।
- शूर न पूछे टीपणा, शकुन न देखे शूर।
- स्वावलंबन की एक झलक पर न्योछावर कुबेर का कोष।
- हृदय नहीं, वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नही।
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात
- क्षमा सोहती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो।
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