अविकारी शब्द / अव्यय शब्द
ऐसे शब्द जिनके स्वरूप में लिंग, वचन, काल, पुरुष एवं कारक आदि के प्रभाव से कोई विकार नहीं होता अर्थात् कोई परिवर्तन नहीं होता , अविकारी शब्द कहलाते हैं।
अविकारी को ही अव्यय भी कहते हैं। अव्यय का शाब्दिक अर्थ- अ (नहीं) + व्यय (खर्चिया परिवर्तन) है।
अर्थात् किसी भी परिस्थिति में जिन शब्दों में विकार नहीं होता, परिवर्तन नहीं होता वे अविकारी या अव्यय शब्द कहलाते हैं. जैसे यहां, वहां, धीरे, तेज, कब और आदि।
अव्यय के भेद
क्रिया विशेषण
ऐसे अव्यय शब्द जो किसी की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें क्रिया विशेषण कहते हैं।यहां, वहां, जल्दी, बहुत आदि।
क्रिया विशेषण के मुख्यतः चार भेद हैं /-
1.कालवाचक
ऐसे अव्यय शब्द जो क्रियाविशेषण के होने का समय व्यक्त करते हैं, उन्हें कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे-
आज मेरी परीक्षा है। तुम दिल्ली कब जाओगे?
इन वाक्यों में ‘आज’ एवं ‘कब’ काल वचन क्रिया विशेषण के उदाहरण है। तथा अन्य उदाहरण कल, जब, प्रतिदिन, प्रायः अभी-अभी, लगातार, अब, तब, पहले, बाद में, तुरंत, प्रातः आदि है।
ऐसे अव्यय शब्द जिनसे क्रिया के घटित होने के स्थान का ज्ञान प्राप्त होता है,उन्हें स्थान वाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे- यहां, वहां, वही, कहीं, ऊपर, नीचे, बाय, पास, दूर, अंदर, बाहर, सामने, निकट आदि। उदाहरण-
खेल का मैदान विद्यालय के पास स्थित है। रमेश यहां रहता है।
3.रितिवाचक
ऐसे अव्यय शब्द जो क्रिया की विधि यार रीति को व्यक्त कीजिए, रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहलाते हैं। इनसे क्रिया के निश्चय, अनिश्चय, स्वीकार, कारण, निषेध आदि अर्थ प्रकट होते हैं।
जैसे- तुम बहुत धीरे-धीरे चलते हो। जरा तेज कदम चलाओ। झटपट पहुंचना है। इसमें धीरे-धीरे, झटपट, तेज रीति वाचक क्रियाविशेषण है।
ऐसे अव्यय शब्द जो क्रिया की अधिकता, न्यूनता आदि परिमाण का बोध कराते हों। उन्हें परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे-थोड़ा-थोड़ा, जितना, उतना, अधिक, कम, कुछ।
वह उतना ही भार उठा पाएगा। जितना चाहो ले लो। नदी में पानी अधिक बह रहा है।
इन वाक्यों में उतना, जितना एवं अधिक शब्द परिमाणवाचक क्रिया विशेषण है।
समुच्चयबोधक
ऐसे अव्यय शब्द जो एक शब्द को दूसरे शब्द से, एक वाक्य को दूसरे वाक्य से अथवा एक वाक्यांश को दूसरे वाक्यांश से जोड़ते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक विशेषण कहते हैं।
समुच्चयबोधक विशेषण दो वाक्यों को जोड़ने का कार्य तो करते ही हैं, साथ ही विकल्प बताने, परिणाम, अर्थ या कारण बताने एवं विभेद बताने का कार्य भी करते हैं।
समुच्चयबोधक के दो भेद हैं /-
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक
ऐसे अव्यय जिनके द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते हैं, जैसे-
संयोजक अव्यय- और, तथा, एवं आदि। विभाजन अव्यय- या, अथवा, कोई एक, कि, चाहे, नहीं, तो, ना आदि। विरोध प्रदर्शन- पर, परंतु, किंतु, लेकिन, मगर, बल्कि, वरन आदि। परिणाम दर्शक- अतः, अतएव, सो, फलतः आदि।
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक
ऐसे अव्यय जो एक मुख्य वाक्य में एक या एक से अधिक आश्रीत वाक्य जोड़ते हैं, व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं। जैसे
कारण वाचक- क्योंकि, इसलिए, के कारण, चुंकी आदि उद्देश्यवाचक - जोकि, ताकि आदि। संकेतवाचक - यदि, तू, यद्यपि, तथापी, जब-तब आदि स्वरुपवाचक - की, जो, अर्थात्, मानो आदि।
संबंध बोधक
ऐसे अव्यय जो संज्ञा सर्वनाम के बाद प्रयुक्त होकर वाक्यगत दूसरे शब्दों से उसका संबंध बताते हैं, संबंध बोधक विशेषण कहलाते हैं, जैसे-
सीता की बहन गीता है।
इसमें ‘की’ संबंध सूचक अव्यय हैं। इन्हें परसर्गीय शब्द भी कहते हैं।
इनके भेद इस प्रकार हैं-
कालवाचक-आगे, पीछे, पूर्व, पश्चात्, उपरांत आदि। स्थानवाचक- पास, पीछे, ऊपर, आगे, बाहर, भीतर, समिप आदि। दिशा वाचक- तरफ, ओर, पार, आस-पास आदि। साधन वाचक -द्वारा, जरिए, मारफत, हाथ, जबानी। विरोध वाचक -उल्टे, विपरीत, खिलाफ, विरुद्ध। सदृस्य वाचक -समान, तुल्य, सम, भाँती, जैसा, तरह। तुलनात्मक -अपेक्षा, सामने, बल्कि। विनीमय वाचक -बदले, सिवा, अलावा, अतिरिक्त। संग्रह वाचक -तक, मात्र, प्रर्यन्त, भर। हेतु वाचक -शिवा, लिए, कारण, वास्ते।
विस्मयादिबोधक अव्यय
ऐसे अव्यय जिनके द्वारा मनोभावों की अभिव्यक्ति होती है। मनोभावों के परिणाम स्वरुप इनका उच्चारण एक विशेष ध्वनि से होता है। अतः हर्ष, शोक, आश्चर्य, तिरस्कार आदि के भाव सूचित करने वाले अव्यय को विस्मयादिबोधक कहते हैं। जैसे- हाय! अच्छाऽऽ ! छी:! वाह! आदि।
हर्षसूचक -अहा! वाह! शाबाश! बहुत खुब! शोकसूचक- आह! हाय! औह! उफ! राम-राम! आदि। भयसूचक -अरे रे! बाप रे! आश्चर्यसूचक- क्या? ऐ! हेैं! आदि। तिरस्कारसूचक-छिः! हट! धिक्! आदि। अभिवादनसूचक- नमस्ते! प्रणाम! सलाम! बधाई! चेतावनीसूचक-होशियार! खबरदार! सावधान! कृतज्ञतासूचक- धन्यवाद! शुक्रिया! जिंदाबाद!